कला आश्रम फाउण्डेशन के अन्तर्गत संचालित कला आश्रम काॅलेज आॅफ परफोर्मिंग आर्टस् द्वारा दिनांक 14 जून को कला आश्रम प्रांगण में कबीर जयन्ती एवं पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया गया। महोत्सव का शुभारंभ फाउण्डेशन के मुख्य प्रबन्धक न्यासी डाॅ. दिनेश खत्री एवं संरक्षक न्यासी डाॅ. सरोज शर्मा द्वारा दीप प्रज्जवलन कर किया गया। माँ शारदे को नमन कर कार्यक्रम की शुरूआत की गई।
पूना से पधारी हिमांशी झंवर ने कत्थक के माध्यम से मेडिटेशन पर अपने विचारों की प्रस्तुति दी। बाहर से पधारे हुए अतिथि इन्द्रदेव आर्य का स्वागत किया। इन्द्रदेव आर्य एवं डाॅ. सरोज शर्मा ने कत्थक नृत्य व आध्यात्म के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये।
कला आश्रम की छात्रा आध्या गुप्ता ने कबीर जयन्ती पर आध्यात्म के साथ कत्थक यात्रा की प्रस्तुति दी। छात्रा श्लोका अग्रवाल ने तराना की प्रस्तुति दी। डाॅ. लीला दवे, गौरी दवे ने कबीर के भावों की अभिव्यक्ति कत्थक के माध्यम से जीवन्त की। कला आश्रम काॅलेज आॅफ परफोर्मिंग आट्र्स के संकाय सदस्य श्रीमती इन्द्रा कुंवर की भी पूर्ण सहभागिता रही।
डाॅ. सरोज शर्मा ने कहा कि कला आश्रम प्रांगण में भारतीय परम्परा पर आधारित भारतीय संस्कृति, कला, योग एवं नृत्य सीखने व प्रशिक्षण प्राप्त करने आते है। नृत्य का योग के साथ एक अहम् सम्बन्ध बताया है।
आज नृत्य-योग शैक्षणिक व व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल है किन्तु इसकी उपयोगिता को अमेरिका व यूरोप जैसे विकासशील देशों ने समझा और अपनाया है। इस अभिव्यक्ति को सभ्य समाज में उच्च स्थान मिला है और शारीरिक व आध्यात्मिक विकास का महत्त्वपूर्ण आधार ही शास्त्रीय नृत्यों में प्रयोग होने वाले कारणों की प्रस्तुति के लिए नर्तक में नियमितता, एकाग्रता, शान्तमन, दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है। इसे नृत्य-योग के अभ्यास से सरलतम किया जा सकता है। नृत्य-योग वे क्रियाएं है जिसके सहारे हम शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक व आध्यात्मिक विकास कर स्वस्थ शरीर व स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं।
आमजनों पर कबीर की वाणी इसलिए भी ज्यादा असर छोड़ती है, क्योंकि उनकी कथनी और करनी में जरा भी फर्क नहीं है। कबीर का ज्ञान आत्मबोध की उपज है। कबीर जिस निर्गुण ब्रह्म की आराधना की बात कर रहे हैं, उसमें प्रेम अनिवार्य साधक तत्त्व है।