अन्तर्राष्ट्रिय नृत्य दिवस महान रिफॉर्मर जीन जॉर्ज नावेरे के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। अन्तर्राष्ट्रिय नृत्य दिवस की शुरूआत 29 अप्रेल 1982 से हुई। इसी दिन यूनेस्को के अंतराष्ट्रीय थिएटर इंस्टिट्यूट की अन्तर्राष्ट्रिय डान्स कमेटी ने 29 अप्रेल को नृत्य दिवस में रूप में स्थापित किया। उदयपुर स्थित कला आश्रम कॉलेज ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स द्वारा दिनांक 29 अप्रेल 2020 को अन्तर्राष्ट्रिय नृत्य दिवस की पूर्व संध्या पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संस्था की निदेशिका डॉ. सरोज शर्मा ने अन्तर्राष्ट्रिय नृत्य दिवस के उपलक्ष्य पर बताया कि “इस दिवस को पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता एवं उपयोगिता का अलख जगाना है, साथ ही लोगों का ध्यान विश्व स्तर पर इस ओर आकर्षित करना था, जिससे लोगों में नृत्य के प्रति जागरूकता फैले। डॉ. सरोज शर्मा ने बताया कि नृत्य स्वस्थ जीवन का एक प्राकृतिक उपहार है।”
वर्तमान में वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते सम्पूर्ण भारतवर्ष में लॉकडाउन होने के कारण एवं सामाजिक दूरी की संकल्पना को दृष्टिगत रखते हुए कला आश्रम कॉलेज ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स में दिनांक 28 अप्रेल को अन्तर्राष्ट्रिय नृत्य दिवस की पूर्व संध्या पर ऑनलाइन माध्यम से आयोजन किया गया। आयोजन में ऑनलाइन ऑडियो/वीडियो माध्यम द्वारा छात्र-छात्राओं एवं प्रतिभागियों को अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस की जानकारियां प्रदान की गई एवं नृत्य की बारिकियों को समझाया। प्रतिभागियों ने ऑनलाइन माध्यम से अपनी अपनी प्रस्तुतियां भेजी। निदेशिका ने बताया की सभी व्यक्तिजन अपने घरों पर रहते हुए ही नृत्य का सुचारू रूप से अभ्यास करते रहे। कला आश्रम फाउण्डेशन के मुख्य प्रबन्धक न्यासी डॉ. दिनेश खत्री एवं पैट्रोन ट्रस्टी डॉ. सरोज शर्मा द्वारा कार्यक्रम का शुभारम्भ नटराज की प्रतिमा के समक्ष पुष्प अर्पित एवं दीप प्रज्जवलन के साथ किया। तत्पश्चात ऑनलाइन माध्यम से कार्यक्रम का विधिवत संचालन किया गया।
कार्यक्रम में नृत्य को योग के साथ संमिश्रण करते हुए विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया। नृत्य के उपचारात्मक, ध्यान एवं योग के मिश्रण द्वारा अलौकिक आनन्द की प्राप्ति नृत्य के माध्यम से दी गई। शास्त्रीय नृत्य की उत्पत्ति, इसकी आवश्यकता एवं भगवान शिव के नटराज एवं शिव तांडव नृत्य पर भी सविस्तार रूप से व्याख्या की गई। तबले की थाप और घुंघरूओं की झंकार, राग मालकोन्स में सुरों की दुर्गम यात्रा तो राधा का रूठना और कृष्ण का मनाना इन एकल एवं युगल प्रस्तुतियों का मनमोहन नृत्य चित्रण ऑनलाइन प्रदर्शित हुआ। निदेशिका द्वारा कत्थक नृत्य, अष्टांग योग, ध्यान यौगिक क्रियाएं, मंत्रोच्चार, वाद्य यंत्रों एवं शास्त्रीय गायन का सममिश्रण की प्रस्तुतियां विश्व नृत्य दिवस के उपलक्ष में आयोजित की गई। कार्यक्रम में कत्थक नृत्य के व्याकरण रूप के साथ ही भरतनाट्यशास्त्र के शास्त्रीय पक्ष को समझाया गया।
भरतनाट्यशास्त्र में प्रयोग होने वाली हस्त मुद्राएं पातांजली द्वारा वर्णित मुद्राओं में समान है, जहां सिर्फ मुद्राओं का विनियोग बदल गया है। नाट्यशास्त्र में बताई गई नृत्य सरचना योगाकृति के समकक्ष है, इसी प्रकार नृत्य में प्रयोग की जाने वाले हस्त व पाद संचालन वर्तमान में प्रयोग होने वाली फिजीयोथैरेपी क्रिया का स्वरूप है। लोकडाउन के इस पीरियड का सृजनात्मक-सकारात्मक बनाने में नृत्य क्रिया प्रमुख रूप से कारगर होगी। नृत्य जहां आत्मविश्वास से सराबोर कर देता है, वहीं यह मन को प्रसन्न, ऊर्जावान, रखने का एक सरल माध्यम है। नृत्य क्रिया से न केवल स्टेमिना मजबूत होता है वरन् श्वसन और पाचनक्रिया भी सुदृढ़ होती है, जो शरीर को स्वस्थ-सुन्दर, सरल व सहज रखने का एक अनुपम प्राकृतिक उपहार है।
नृत्य अभ्यास से न केवल शारीरिक फायदे है वरन् इससे मानसिक और आध्यात्मिक प्रगति भी होती है व शरीर नकारात्मक भावों को दूर एवं सृजनशीलता बढ़ाता है, जिसके माध्यम से हम अपने चारों और स्वस्थ सुन्दर वातावरण का निर्माण करते है। अतः संक्षिप्त रूप से कहा जा सकता है कि नृत्य न केवल मनोरंजन है वरन् यह स्वाध्याय है, जिसके माध्यम से हम मन, मस्तिष्क और शरीर को आत्मिक सयोजन देते है। इस आधार पर हमें “नृत्य स्वस्थ जीवन का एक प्राकृतिक उपहार है” इस भाव को स्वीकारना होगा।
मिस हृदया खत्री द्वारा शुद्ध कत्थक नृत्य, अतिरिक्त तराना, उपशास्त्रीय नृत्य, सूफी संगीत कत्थक नृत्य के साथ, कत्थक यात्रा एवं लोक नृत्य की भी प्रस्तुति दी गई। मास्टर मधुरम खत्री द्वारा सूफी नृत्य पर प्रस्तुति दी गई।
कार्यक्रम में नृत्य के विभिन्न पहलुओं एवं विधाओं पर मंथन किया गया एवं नृत्य व संगीत द्वारा उपचारात्मक पद्धतियों पर भी संव्याख्या की गई। नृत्य की महत्ता एवं प्रत्येक आयु वर्ग पर इसकी उपयोगिता के साथ नृत्य व गायन के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला गया।
कार्यक्रम में कला आश्रम फाउण्डेशन के मुख्य प्रबन्ध न्यासी डॉ. दिनेश खत्री द्वारा स्वास्थ्य, जीवन, आनन्द के साथ नृत्य एवं योग की उपादेयता पर सारगर्भित ऑनलाइन व्याख्यान दिया गया। डॉ. दिनेश खत्री ने बताया कि नृत्य की लय एवं ताल की गति हमारे हृदय में है, नाड़ी में है, रक्त के परिसंचरण में है, श्वास में है और यह समगति जीवन में अलौकिक सौन्दर्य और आनन्द को स्फूरित करती है, जब यह लय और गति यदि अनियमित हो जाए तो सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है यहीं जीवन की वास्तविकता है, जिसे नृत्य के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है।
ऑनलाइन कार्यक्रम में डॉ. दिव्या राठौर उदयपुर, सुगंधा आचार्य मुंबई, पुष्पांजलि अमेरिका, राज भाई शिकागो, प्रियंका उदयपुर, हृदया खत्री ने इस कार्यक्रम की सराहना के साथ ही अपनी उपस्थिति दर्ज की। इस कार्यक्रम में तकनीकी सहायक मधुरम खत्री का सहयोग रहा